दुर्गोत्सव में छुपा विश्व प्रसिद्ध सरायकेला छऊ नृत्य उत्पत्ति का रहस्य


*दुर्गा पूजा उत्सव में सप्तमी को पूरी हुई खंडा धुआ रश्म, शुरू हुई माता दुर्गा की पूजा अर्चना*

*दीपक कुमार दारोघा*

सरायकेला:दुर्गा पूजा उत्सव में सप्तमी को जिला मुख्यालय सरायकेला में लोगों ने खंडा धुआ रश्म पूरा किया एवं खंडा (अस्त्र-शस्त्र) माता शक्ति रूपिणी के समक्ष रखकर पूजा अर्चना प्रारंभ किया।

सांकेतिक रूप से अस्त्र शस्त्र (ढाल तलवार) लिए लोग खरकाई नदी के माजणा घाट पहुंचे। अस्त्र-शास्त्र की साफ सफाई कर घाट में पूजा अर्चना की।

सूत्रों के मुताबिक सरायकेला प्रिंसली स्टेट के समय से यह परंपरा रही। खंडायत,क्षेत्रिय योद्धा परिवार के लोग अपने पारंपरिक अस्त्र-शास्त्र को साफ कर माता शक्ति रुपिणी के समक्ष  रखकर पूजा अर्चना करते रहे हैं। और विजयादशमी को पूजा अर्चना के पश्चात अपराजिता की लता भुजाओं में लगाकर विजय की कामना के साथ ढाल तलवार(फरिखंडा) नृत्य कर शक्ति रुपिणी के समक्ष भक्ति की अभिव्यक्ति करते थे। जो अब विरले ही देखने को मिलता है।

बताते चलें कि सरायकेला पैलेस में सिंहभूम की इस्ट देवता माता पाऊडी की 16 पूजा जितुआ से शुरू हुई थी। जो लगातार जारी है। पूजा अष्टमी को संपन्न होगी। 16 पूजा के दौरान प्रत्येक दिन मांगलिक बाजा की धुन भी सुनाई पड़ी। यह मांगलिक ध्वनि विश्व प्रसिद्ध सरायकेला छऊ नृत्य संगीत में भी सुनाई पड़ती है।

सप्तमी को राजा प्रताप आदित्य सिंहदेव अपने परिजनों के साथ खरकाई नदी के माजणा घाट पहुंचे। अस्त्र-शस्त्र साफ कर पूजा अर्चना की। इसके बाद ढाल तलवार को लेकर पैलेस पहुंचे और शक्ति रूपिणी के समक्ष रखकर पूजा अर्चना प्रारंभ की।

Comments