शास्त्रीय नृत्य छऊ की धरती सरायकेला का पर्यटनीय विकास.....

 

 *अधर में विश्व प्रसिद्ध सरायकेला छऊ की धरती का पर्यटनीय विकास*

दीपक कुमार दारोघा 

सरायकेला: विश्व प्रसिद्ध सरायकेला छऊ कला की धरती का पर्यटन विकास अधर में पड़ी है।

सूत्रों के मुताबिक सरायकेला शहरी बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के समय में पहल शुरू हुई थी।

जिला मुख्यालय होने के बावजूद सरायकेला में अनाज सब्जी मंडी नहीं है। दैनिक मार्केट में सब्जी की ऊंची दाम के कारण लोग अक्सर परेशान रहते हैं। अनाज से लेकर खाने के तेल तक मिलावटी के शक के दायरे में है। लोग अब तो यहां तक कहने लगे हैं कि सरसों तेल गर्म करने पर वाइट हो जाता है।

क्षेत्र में रोजगार का साधन कृषि एवं छऊ कला संस्कृति है। प्राचीन छऊ कला का क्षेत्र होने के बावजूद पर्यटन क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध हेतु सरकारी प्रयास गौण  है।

लोगों का मानना है कि सरायकेला को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने से यहां के स्थानीय लोग टूरिस्ट गाइड के रूप में भी आर्थिक उपार्जन कर पाते।

खरकाई नदी तट क्षेत्र में बेहतरीन पर्यटनीय क्षेत्र है। इसमें से एक प्राचीन भैरव पीठ स्थली है। जहां राजा रजवाड़ समय में छऊ प्रशिक्षण आश्रम (आखड़ा शाल) हुआ करता था। अब भी यहां लोग भैरव देव की पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं।

सूत्रों ने यह भी बताया कि मद्रास में समुद्र तट क्षेत्र में शास्त्रीय नृत्यों के प्रशिक्षण केंद्र हैं। जहां भक्ति आराधना की भी आभास होती है।

इसी तरह शास्त्रीय नृत्य सरायकेला छऊ का प्रशिक्षण केंद्र भी खरकाई नदी तट पर बन सकता है। खरकाई नदी तट पर कुदरसई शिव मंदिर के पास (डियर पार्क) छह नृत्य परफॉर्मिंग आर्ट सेंटर का निर्माण एक अच्छी पहल हो सकती है। ऐसे कई क्षेत्र हैं जिसे पर्यटनीय क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।

 पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने सरायकेला शहरी क्षेत्र का विकास को लेकर पहल की थी। जुडको ने खरकाई नदी तट क्षेत्र में मरीन ड्राइव सहित कई प्रोजेक्ट धरातल में उतारने का प्रयास की थी। जो फिलहाल अधर में लटकी है।

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